• बेड़ियों का खुलना : बघेल सरकार का यह कदम सदा याद रखा जाएगा

    भारत में आरक्षण का इतिहास बहुत पुराना है। एक ओर धार्मिक ग्रंथों ने ऊपर के 3 वर्गों के लिए सारे अधिकार आरक्षित कर दिए

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    - संजीव खुदशाह

    लोकतंत्र के चारों स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा मीडिया में इनकी जनसंख्या नगण्य हैं। उस लिहाज से 27 फीसदी आरक्षण महत्वपूर्ण है। आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने से ओबीसी की आरक्षण की लिमिट भी भविष्य में बढ़ेगी ऐसा हम मान सकते हैं। जिस प्रकार मंडल आयोग को लागू करने में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने महत्वपूर्ण कदम उठाया था। ठीक उसी प्रकार भूपेश बघेल के इस कदम का भी स्वागत किया जाना चाहिए और उन तमाम दबे-कुचले लोगों को उत्सव मनाना चाहिए। अपनी बेड़ियों के खोले जाने के उपलक्ष्य में।

    भारत में आरक्षण का इतिहास बहुत पुराना है। एक ओर धार्मिक ग्रंथों ने ऊपर के 3 वर्गों के लिए सारे अधिकार आरक्षित कर दिए। वहीं दूसरी ओर नीचे के आखिरी वर्ण शूद्र को सारे अधिकार से वंचित कर दिया। शूद्र जो आज एससीएसटी ओबीसी में गिना जाता है, कई सालों से उपेक्षित और प्रताड़ित रहा है। यह मांग हमेशा से होती रही है कि आरक्षण के माध्यम से प्रतिनिधित्व का अधिकार मिले और यह अधिकार उसकी संख्या बल के हिसाब से हो। यानी जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी भागीदारी।

    इसी परिप्रेक्ष्य में हम सबके पूर्वजों ने मिलकर संविधान की रचना की, जिसमें शोषित और पीड़ित लोगों को आरक्षण के माध्यम से प्रतिनिधित्व का अधिकार दिया। कुछ लोग समझते हैं कि आरक्षण गरीबी उन्मूलन अभियान का हिस्सा है। जबकि यह गलत है। आरक्षण दरअसल शैक्षणिक, सामाजिक रूप से पिछड़े, सताए हुए लोगों को दिए जाने का प्रावधान संविधान में किया गया है। इसी के तहत आरक्षण दिया जाता रहा है। लेकिन सवर्ण आरक्षण इस सिद्धांत के विपरीत आर्थिक आधार पर दिया जाता है।

    छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 76 फीसदी आरक्षण का जो विधेयक पास किया है जिसमें अनुसूचितजन जाति को 32 फीसदी अनुसूचित जाति को 13फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी सवर्णों को 4 फीसदी आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है। यह निर्णय ऐतिहासिक है, इसका स्वागत किया जाना चाहिए। यह निर्णय केवल चुनावी या राजनीतिक नहीं है। उन हजारों वर्षों से दबे, कुचले, पिछड़े लोगों को उनकी जनसंख्या के मुताबिक प्रतिनिधित्व देने का जो प्रयास किया गया है वह सराहनीय है। हालांकि यहां पर पिछड़ा वर्ग को उनकी जनसंख्या से काफी कम आरक्षण दिया जा रहा है। बावजूद इसके यह एक महत्वपूर्ण कदम है। जिस का स्वागत किया जाना चाहिए।

    अब तक सरकारी सेवाओं से लेकर राजनीति, व्यापार, प्रोफेशनल केवल ऊंची जातियों के ही देखे जाते थे। बाकी जातियों के लोग चतुर्थ श्रेणी का काम करके ही अपना काम चलाते थे। भले ही उनकी योग्यता कहीं अधिक रही हो । यह लोग धार्मिक दृष्टिकोण से भी निम्न माने जाते रहे हैं। इस कारण इनमें मानसिक विकास बाधित होता रहा। क्योंकि अगर आप किसी को लगातार निम्न या ताड़न के अधिकारी कहते रहेंगे तो वह व्यक्ति अपने आप को कुछ समय बाद वैसा ही मानने लगता है।

    यहां बताना जरूरी है कि इसके पहले भी भूपेश बघेल की सरकार ने ओबीसी को 27फीसदी आरक्षण देने का आदेश पारित किया था। लेकिन कुछ जातिवादी सवर्णों ने हाई कोर्ट पर मुकदमा दायर कर दिया। यह आदेश टिक नहीं पाया। हाईकोर्ट ने कहा कि इसके लिए जनगणना का डाटा पेश करें। छत्तीसगढ़ की सरकार ने क्वांटिफिएबल डाटा तैयार किया और उस आधार पर 76 फीसदी आरक्षण देने का निर्णय लिया। वह ऐसा विधेयक पास करने में सफल हो गए।

    शूद्र जातियों के पिछड़ेपन का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि आज भी उन्हें नहीं मालूम है कि सरकार उन्हें क्या बेनिफिट देने जा रही है। भारतीय समाज का 85 फीसदी हिस्सा शोषण अंधकार अशिक्षा में जी रहा है। उसकी नासमझी का आलम यह है कि उसे अपने हकों का इल्म नहीं है।


    50 फीसदी आरक्षण सीमा: सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसदी आरक्षण की सीमा तय की थी। लेकिन केंद्र सरकार के 10 फीसदी सवर्ण आरक्षण ने इस बंधन को तोड़ दिया। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी अपना मुहर लगाया। इस बंधन के टूटने के बाद सबसे पहले झारखंड की सरकार ने अपने यहां आरक्षण की सीमा को बढ़ाया। हालांकि इसके पहले तमिलनाडु की सरकार विधेयक पास करके कई साल पहले से 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण अपने राज्य में दे रही है। इसी क्रम में छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल की सरकार का यह निर्णय बेहद महत्वपूर्ण है। भारत के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि धार्मिक रूप से नीच करार दिए जाने वाली जातियों को, उसके साथ-साथ सवर्ण जातियों को भी उनके जनसंख्या के अनुपात में ही आरक्षण दिया जाएगा। बावजूद इसके 24्र फीसदी क्षेत्र अनारक्षित होगा। जिसमें किसी भी समुदाय के लोग प्रतियोगिता कर सकेंगे।

    यहां पर यह बताना जरूरी है कि ओबीसी (यानी अन्य पिछड़ा वर्ग जिसमें पिछड़ा वर्ग की जातियों के साथ अल्पसंख्यक वर्ग के पिछड़े भी शामिल हैं) को मंडल आयोग ने 52 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की थी। इस लिहाज से आज भी जो आरक्षण 27 फीसदी पिछड़ों को दिया जा रहा है यह उनकी जनसंख्या के मुताबिक बेहद कम है। पिछड़ा वर्ग को राजनीतिक, सरकारी सेवाओं और शिक्षण संस्थान में बेहद कम प्रतिनिधित्व मिला है। लोकतंत्र के चारों स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा मीडिया में इनकी जनसंख्या नगण्य हैं। उस लिहाज से 27 फीसदी आरक्षण महत्वपूर्ण है। आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने से ओबीसी की आरक्षण की लिमिट भी भविष्य में बढ़ेगी ऐसा हम मान सकते हैं। जिस प्रकार मंडल आयोग को लागू करने में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने महत्वपूर्ण कदम उठाया था। ठीक उसी प्रकार भूपेश बघेल के इस कदम का भी स्वागत किया जाना चाहिए और उन तमाम दबे-कुचले लोगों को उत्सव मनाना चाहिए। अपनी बेड़ियों के खोले जाने के उपलक्ष्य में।

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